वसीयत सम्बन्धी हिन्दू विधि Shortcuts - The Easy Way ( Legatee ) - Target Judiciary

Our Target to achieve success 100 % in Judiciary Exams

Friday, 2 November 2018

वसीयत सम्बन्धी हिन्दू विधि Shortcuts - The Easy Way ( Legatee )

वसीयत सम्बन्धी हिन्दू विधि (Legatee)

वसीयत सम्बन्धी हिन्दू विधि (Legatee)

वसीयत सम्बन्धी हिन्दू विधि (Legatee)

Is always essential to tender in evidence the F.I.R. ?

_________________


#legatee

वसीयत अर्थात इच्छा पत्र एक हिन्दू द्वारा अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में एक विधिक घोषणा के समान है जो वह अपनी मृत्यु के बाद सम्पन्न होने की इच्छा करता है। प्राचीन हिन्दू विधि में इस सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती किन्तु आधुनिक विद्वानों के अनुसार  हिन्दू इच्छा पत्र द्वारा अपनी संपत्ति किसी को दे सकता है .

वसीयत किसी जीवित व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति के बारे में कानूनी घोषणा है जो उसके मरने के बाद प्रभावी होती है .

वसीयत का पंजीकृत होना आवश्यक नहीं है पर दो साक्षियों द्वारा प्रमाणित होना आवश्यक है [माधव्य बनाम अचभा २ एम.एल.जे ७१६ ]

प्रत्येक स्वस्थ मस्तिष्क वाला वयस्क व्यक्ति जिसने भारतीय वयस्कता अधिनियम १८७५ के अंतर्गत वयस्कता की आयु प्राप्त की है ,इच्छापत्र द्वारा अपनी संपत्ति का निवर्तन कर सकता है अर्थात किसी को दे सकता है [हरद्वारी लाल बनाम गौरी ३३ इलाहाबाद ५२५ ]

वसीयत केवल उस संपत्ति की ही की जा सकती है जिसे अपने जीवित रहते दान रीति द्वारा अंतरित किया जा सकता हो ,ऐसी संपत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती जिससे पत्नी का कानूनी अधिकार और किसी का भरण-पोषण का अधिकार प्रभावित होता है

हिन्दू विधि के अनुसार दाय की दो पद्धतियाँ है -

[१] -मिताक्षरा पद्धति
[२] -दायभाग पद्धति

दायभाग पद्धति बंगाल तथा आसाम में प्रचलित हैं और मिताक्षरा पद्धति भारत के अन्य प्रांतों में .मिताक्षरा विधि में संपत्ति का न्यागमन उत्तरजीविता व् उत्तराधिकार से होता है और दायभाग में उत्तराधिकार से .

मिताक्षरा विधि का यह उत्तरजीविता का नियम संयुक्त परिवार की संपत्ति के सम्बन्ध में लागू होता है तथा उत्तराधिकार का नियम गत स्वामी की पृथक संपत्ति के संबंध में .

मिताक्षरा पद्धति में दाय प्राप्त करने का आधार रक्त सम्बन्ध हैं और दाय भाग में पिंडदान .

इसलिए उच्चतम न्यायालय ने एस.एन.आर्यमूर्ति बनाम एम.एल.सुब्बरैया शेट्टी ए.आई.आर.१९७२ एस.सी.१२२९ के वाद में यह निर्णय दिया की एक सहदायिक अथवा पता संयुक्त परिवार की संपत्ति को या उसमे के किसी अंश को इच्छापत्र द्वारा निवर्तित नहीं कर सकता क्योंकि उसकी मृत्यु के बाद संपत्ति अन्य सहदयिकों को उत्तरजीविता से चली जाती है और ऐसी कोई संपत्ति शेष नहीं रहती जो इच्छापत्र के परिणामस्वरूप दूसरे को जाएगी .

किन्तु अब वर्तमान विधि में हिन्दू उत्तराधिकार में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा ३० के अनुसार प्रत्येक मिताक्षरा सहदायिक अपने अविभक्त सहदायिकी अंश को इच्छापत्र द्वारा निवर्तित करने के लिए सक्षम हो गया है .

अतः अब निम्न संपत्ति की वसीयत की जा सकती है -

[मिताक्षरा विधि से ]

[१] स्वअर्जित सम्पदा
[२] स्त्रीधन
[३] अविभाज्य सम्पदा [रूढ़ि से मना न किया गया हो ]
[ दायभाग विधि से ]
[१] वे समस्त जो मिताक्षरा विधि से अंतरित हो सकती हैं ,
[२] पिता द्वारा स्वअर्जित अथवा समस्त पैतृक संपत्ति ,
[३] सहदायिक ,अपने सहदायिकी अधिकार को .

वसीयत को कभी भी वसीयत कर्ता द्वारा परिवर्तित या परिवर्धित किया जा सकेगा .

यदि वसीयत में कोई अवैध या अनैतिक शर्त आरोपित है तब वह वसीयत तो मान्य है और शर्त शून्य है .

इसके साथ ही यदि वसीयत को पंजीकृत करा लिया जाये तो वसीयत का कानूनी रूप से महत्व भी बढ़ जाता है|

No comments:

Post a Comment